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एएमयू (अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ) की १०० वि वर्षगांठ : कभी तवायफों के कोठे से लिया चंदा, कभी घुंघरू बांधकर मंच पर उतर आए थे सर सैयद

  December 22, 2020
एएमयू (अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ) की १०० वि वर्षगांठ : कभी तवायफों के कोठे से लिया चंदा, कभी घुंघरू बांधकर मंच पर उतर आए थे सर सैयद
दुनियाभर में अपनी तालीम के लिए मशहूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) आज 100 साल की हो गई। यूनिवर्सिटी बनाने वाले सर सैयद में एक अलग ही जुनून था। उन्होंने पैसा जुटाने के लिए तवायफों के कोठे से चंदा लिया। खुद लैला-मजनूं के नाटक में लैला बनकर मंच पर उतर आए थे। ऐसे ही कई वाकयों के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का इतिहास बड़ा रोचक है।

यूनिवर्सिटी के 100 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल तरीके से इसमें शिरकत कर रहे हैं। लाल बहादुर शास्त्री के बाद मोदी ऐसे पहले पीएम होंगे, जो AMU के प्रोग्राम में अपनी बात रखेंगे। 56 साल बाद ऐसा होगा। हालांकि AMU का एक तबका PM मोदी के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर खफा भी है।

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लाल बहादुर शास्त्री 1964 में AMU के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे।
1857 की क्रांति के बाद सर सैयद ने देखा AMU का सपना
AMU के उर्दू डिपार्टमेंट के हेड प्रो. राहत अबरार बताते हैं कि 1869-70 में सर सैयद बनारस में सिविल जज के तौर पर पोस्टेड थे। उस दौरान उनका लंदन आना-जाना लगा रहता था। वहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी देखी हुई थीं। तब उनके जेहन में आया कि एक यूनिवर्सिटी बनाई जाए जो ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट कहलाए। यह सपना उनका जुनून बन चुका था। 9 फरवरी 1873 को उन्होंने एक कमेटी बनाई, जिसने तमाम रिसर्च कर 24 मई 1975 को एक मदरसा बनाने का ऐलान किया। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि उस समय प्राइवेट यूनिवर्सिटी बनाने की परमिशन नहीं मिलती थी। 2 साल बाद, 8 जनवरी 1877 को मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज शुरू हो गया।
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यह फोटो साल 1953 की है। तब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और जाकिर हुसैन AMU आए थे।

यूनिवर्सिटी के लिए अलीगढ़ ही क्यों चुना गया?

प्रो. राहत अबरार बताते हैं कि सर सैयद चाहते थे कि यूनिवर्सिटी वहां बने, जहां का वातावरण सबसे अच्छा हो। इसके लिए डॉक्टर आर जैक्सन की अगुआई में एक तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई। चूंकि उस समय कोई पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड तो था नहीं, तो इन लोगों ने अपनी रिसर्च की। इस कमेटी ने 3 पॉइंट्स पर अपनी रिपोर्ट दी।

  • नॉर्थ इंडिया में सबसे बढ़िया वातावरण उस समय अलीगढ़ का था। इसका कारण बताया गया कि अलीगढ़ में उस समय जमीन के अंदर पानी का लेवल 23 फीट पर था। उस समय दो चीजों से लोग ज्यादा मरते थे- सैलाब या अकाल। अलीगढ़ के आसपास कोई नदी, झरना या झील नहीं है, जिससे बाढ़ आ सके। वहीं, उस समय पानी का लेवल इतना अच्छा था कि अकाल का भी डर नहीं था।
  • अलीगढ़ ट्रांसपोर्ट फ्रेंडली था। जीटी रोड बन चुका था और रेलवे ट्रैक भी बिछ गया था। इससे आसपास के जिलों के बच्चे भी आसानी से यूनिवर्सिटी तक पहुंच सकते थे।
  • इस्लाम में हजरत अली को ज्ञान का द्वार माना गया है। ऐसे में हजरत अली के नाम पर बने इस शहर का चुनाव किया गया। मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने की वजह से यहां मुस्लिम बच्चे भी बहुत हैं।
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फोटो 13 मार्च 1976 की है। तब राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद AMU आए थे।

नाटक में लैला बन गए थे सर सैयद

AMU में हिस्ट्री डिपार्टमेंट के पूर्व चेयरमैन और कोआर्डिनेटर प्रो. नदीम रिजवी बताते हैं कि सर सैयद ने यूनिवर्सिटी बनाने के लिए खूब संघर्ष किया। उन्होंने पैसे इकट्ठा करने के लिए नए-नए तरीके ईजाद किए। उन्होंने यूनिवर्सिटी के लिए भीख मांगी। लोगों के पास जा-जाकर चंदा इकट्ठा किया और नाटक में भी काम किया।

1888 का एक किस्सा बताते हुए प्रोफेसर नदीम रिजवी कहते हैं कि उन्होंने चंदा इकट्ठा करने के लिए अलीगढ़ में एक नुमाइश में अपने कॉलेज के बच्चों का लैला-मजनूं नाटक रखवाया। उस समय लड़कियों का रोल भी लड़के किया करते थे। ऐन वक्त पर लैला बनने वाले लड़के की तबीयत खराब हो गयी, तो सर सैयद खुद पैरों में घुंघरू बांधकर स्टेज पर आ गए। दर्शकों से बोले- मैं अपनी दाढ़ी और उम्र नहीं छुपा सकता, लेकिन आप मुझे लैला ही समझें और चंदा दें। इसके बाद वे नाचने लगे। तब उन्हें वहां के कलेक्टर शेक्सपियर और मौलाना शिबली ने नाचने से रोका था।

तवायफों से चंदा लिया, तो कट्टरपंथी भड़क गए

यूनिवर्सिटी के लिए चंदा लेने के लिए सर सैयद तवायफों के कोठों पर भी पहुंच गए थे। जब इसकी जानकारी कट्टरपंथियों को मिली, तो उन्होंने ऐतराज जताया कि किसी शैक्षणिक संस्थान में कैसे तवायफों का पैसा लगाया जा सकता है। इसका हल निकालते हुए सर सैयद ने कहा कि इस पैसे से टॉयलेट बनाए जाएंगे। फिर मामला शांत हो गया।

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फोटो 18 जून 2008 की है। तब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम दीक्षांत समारोह में पहुंचे थे।

सेल्फ हेल्प का कॉन्सेप्ट तैयार किया

प्रो. राहत अबरार कहते हैं कि यूनिवर्सिटी के लिए सर सैयद ने सेल्फ हेल्प का कॉन्सेप्ट तैयार किया। किसी ने 25 रुपए का चंदा दिया, तो उसके नाम पर बाउंड्री वॉल बना दी। किसी ने 250 का चंदा दिया, तो होस्टल या क्लास का नाम रख दिया। 500 रुपए देने वालों के नाम सेंट्रल हाल में लिखने का फैसला हुआ। उस समय हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सभी ने बढ़-चढ़कर चंदा दिया और आखिरकार 1920 में यूनिवर्सिटी बन गयी।

काशी नरेश को अपना शामियाना खुद लाना पड़ा था

1877 में सर सैयद बनारस में पोस्टेड थे। जब उनका रिटायरमेंट हुआ तो उन्होंने काशी नरेश शम्भू नारायण को कॉलेज में आमंत्रित किया, लेकिन वहां उनकी आवभगत के इंतजाम नहीं थे। ऐसे में बनारस नरेश अपना शामियाना लेकर अलीगढ़ पहुंचे, जहां उन्हें सम्मानित किया गया।

इस कॉलेज का पहला ग्रेजुएट छात्र हिंदू था

प्रो. राहत अबरार बताते हैं कि मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज पहले कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड था। बाद में वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जुड़ा। 1881 में यहां 4 लड़कों ने पोस्ट ग्रेजुएशन का इम्तिहान दिया था। उनमें से तीन फेल हो गए थे। ईश्वरी प्रसाद पहले स्टूडेंट के तौर पर पासआउट हुए थे। बाद में उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। आगे चलकर वे मशहूर इतिहासकार भी हुए। प्रो. नदीम रिजवी कहते हैं कि 1920 में जब कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का दर्जा मिला, तो उस समय 300 ही छात्र थे। आज यहां 30,000 छात्र हैं।

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फोटो साल 8 दिसंबर 1951 की है। तब यहां दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद आए थे।

यूनिवर्सिटी की पहली चांसलर महिला थीं

1920 में जब कॉलेज को यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया, तब पहली चांसलर बेगम सुल्ताना को बनाया गया। वाइस चांसलर राजा महमूदाबाद को बनाया गया। यह उस समय बड़ी बात थी कि किसी महिला को यूनिवर्सिटी की कमान सौंपी गई थी।

यूनिवर्सिटी में इंदिरा का भी विरोध हुआ

प्रो. नदीम रिजवी कहते हैं कि सरकार और AMU का हमेशा से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाजपा सरकार में यहां की स्टूडेंट यूनियन सरकार की नीतियों की आलोचना करती हैं। इंदिरा गांधी के समय मे भी सरकार से खूब टकराव हुआ। इंदिरा गांधी एक बार अलीगढ़ में एक शादी में शामिल होने पहुंची थीं। वे यूनिवर्सिटी में जाने वाली सड़क पर घूमना चाहती थीं, लेकिन स्टूडेंट यूनियन ने उन्हें गेट के अंदर नहीं जाने दिया। आखिरकार उन्हें वापस लौटना पड़ा। हालांकि, वे उस समय प्रधानमंत्री नहीं थीं, लेकिन केंद्र सरकार का उस समय माइनॉरिटी को लेकर कोई इश्यू चल रहा था, जिस पर स्टूडेंट यूनियन अपना विरोध कर रही थीं।

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फोटो 24 जनवरी 1948 की है। तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने AMU स्टूडेंट्स यूनियन को सम्मानित किया था।

जिन्ना की तस्वीर का विरोध करने वाले सांसद यहीं पढ़े

प्रो. नदीम रिजवी कहते है कि जिन भाजपा सांसद सतीश गौतम ने जिन्ना की तस्वीर पर बवाल मचाया था, वे इसी यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। उस दौरान उन्होंने उसी तस्वीर के नीचे सैकड़ों भाषण दिए हैं। यह शुरू से ही तय था कि सियासत और AMU कभी साथ नहीं चले।

कितनी बड़ी है यूनिवर्सिटी

15 विभागों से शुरू हुए AMU में आज 108 विभाग हैं। करीब 1200 एकड़ में फैली यूनिवर्सिटी में 300 से ज्यादा कोर्स हैं। यहां आप नर्सरी में एडमिशन लेकर पूरी पढ़ाई कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड 7 कॉलेज, 2 स्कूल, 2 पॉलिटेक्निक कॉलेज के साथ 80 हॉस्टल हैं। यहां 1400 का टीचिंग स्टाफ है और 6000 के करीब नॉन टीचिंग स्टाफ है। (स्रोत: भास्कर)


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