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दुर्लभ नजारा : आर्कटिक में घूमने वाला जीव वॉलरस 4300KM दूर आयरलैंड में दिखा, वैज्ञानिक परेशान

  March 16, 2021   समाचार आईडी 2342
दुर्लभ नजारा : आर्कटिक में घूमने वाला जीव वॉलरस 4300KM दूर आयरलैंड में दिखा, वैज्ञानिक परेशान
किसी को भी अपना घर छोड़ना अच्छा नहीं लगता. लेकिन अक्सर पर्यावरण के बदलाव और इंसानों की बढ़ती गतिविधियों की वजह से कुछ जीवों को अपना घर छोड़ना पड़ता है

काउंटी केरी, SAEDNEWS : उत्तरी ध्रुव के ठंडी वाले आर्कटिक इलाके में रहने वाला वॉलरस 4325 किलोमीटर दूर आयरलैंड के तट के पास दिखाई पड़ा। जिसे लेकर पर्यावरण वैज्ञानिक काफी चिंतित हैं। वो इसे बड़ा बदलाव कह रहे हैं। कोई जीव इतनी दूर अपना घर छोड़कर आ जाए तो ये बड़ी चेतावनी है प्राकृतिक बदलाव की।

सोमवार यानी 15 मार्च को एक स्थानीय शख्स और उसकी पांच साल की बेटी ने आयरलैंड के काउंटी केरी इलाके के तट पर एक युवा वॉलरस (Walrus) को देखा। इसे देखने के बाद उन्होंने स्थानीय प्रशासन को सूचना दी। क्योंकि आयरलैंड में वॉलरस का दिखना अत्यधिक दुर्लभ है। यह वॉलरस आर्कटिक से आया था. इस स्थान से आर्कटिक की दूरी 4300 किलोमीटर से ज्यादा है।

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स्थानीय प्रशासन ने कहा कि ये जीव आयरलैंड के आसपास के समुद्र में पाया ही नहीं जाता है. इसके बाद वैज्ञानिकों को इसकी जानकारी दी गई है। WWF में आर्कटिक और मरीन लाइफ के सीनियर एडवाइजर टॉम अर्नबोम ने कहा कि इस इलाके में वॉलरस दुर्लभ ही दिखते हैं। लेकिन युवा जीव नए प्रजनन स्थान या खाने की खोज में लंबी दूरी तय कर लेते हैं।
टॉम ने कहा कि इस वॉलरस का यहां तक आना एक प्राकृतिक बदलाव की निशानी है। इतनी दूर आना काफी बड़ी बात है। इसका आकार एक बड़े बैल की तरह है। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह पहले तट काउंटी केरी के वैलेंशिया आइलैंड के तट पर पत्थर पर चढ़ा। फिर कुछ देर के लिए समुद्र में गायब हो गया। इसके बाद आया तो वापस दो-तीन घंट तक उसी पत्थर पर आराम करता रहा।
मरीन बायोलॉजिस्ट केविन फ्लैनेरी कहते हैं कि यह पहली बार हुआ है जब आर्कटिक सर्किल से आयरलैंड तक कोई वॉलरस आया हो। द आयरिश व्हेल एंड डॉल्फिन ग्रुप (IWDG) ने कहा कि 1999 से अब तक यह तीसरी बार हुआ है जब वॉलरस आयरलैंड तक आया हो। ये भी हो सकता है कि वह किसी आइसबर्ग पर सोया हो और बहकर यहां तक आ गया हो।
जबकि, टॉम अर्नबोम का कहना है कि वह खाने या प्रजनन की तलाश में यहां तक आया है। कई बार ये छिछले पानी की तरफ चले जाते हैं। जहां 100 से 200 मीटर की गहराई हो। यहां पर ये मसेल्स (Mussels) या क्लेम्स (क्लेम्स) खाते हैं। ये एक दिन में हजारों क्लेम्स खाने की क्षमता रखते हैं।
टॉम ने कहा कि ये भी हो सकता है कि ये अपने समूह से अलग हो गया हो। अगर ऐसा हुआ है तो ये ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेगा। हालांकि ये वॉलरस तस्वीरों में बीमार नहीं दिख रहा है। आमतौर पर जानवर अपने घर का रास्ता खुद खोजकर वापस चले जाते हैं। हो सकता है ये भी चला जाए। लेकिन वाकई ये अत्यधिक दुर्लभ नजारा है।
उत्तरी अटलांटिक में 20 हजार से ज्यादा वॉलरसों का घर है. लेकिन पर्यावरण परिवर्तन और जहाजों के आने-जाने के मार्ग की वजह से इनके घर टूट रहे हैं। ये अपना घर और रहवास वाला इलाका छोड़ने को मजबूर है। ऐसे में इस प्रजाति के जीवन पर खतरा भी मंडरा रहा है।
क्लाइमेट चेंज और इंसानी गतिविधियों की वजह से प्रशांत महासागर, अलास्का के पास, उत्तर-पूर्वी रूस में हजारों स्तनधारी और समुद्री जीव मारे जा चुके हैं। वॉलरस क्लाइमेट चेंज को तो बर्दाश्त कर सकता है लेकिन खाने और प्रजनन के लिए तो उसे जगह बदलनी ही पड़ेगी। क्योंकि उसके इलाके में तो इंसानी गतिविधियां बढ़ गई हैं। (स्रोत: आजतक)

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