भारत में हर साल मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से एक दिन पहले लोहड़ी (Lohri 2021) का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी को मनाया जा रहा है. यह पर्व पंजाब और हरियाणा के प्रमुख त्योहारों में से एक है, लेकिन इस पर्व को देश व दुनिया में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, क्योंकि पंजाब के लोग भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बसे हुए हैं. यही वजह है कि दुनिया के कई हिस्सों में विशेषकर कनाडा में भी लोहड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है.
लोहड़ी (Lohri) का त्योहार शरद ऋतु के अंत में मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि लोहड़ी के दिन साल की सबसे लंबी अंतिम रात होती है और अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगता है. कहा जाता है कि लोहड़ी के समय किसानों के खेत लहलहाने लगते हैं और रबी की फसल कटकर आती है. नई फसल के आने की खुशी और अगली बुवाई की तैयारी से पहले लोहड़ी का जश्न मनाया जाता है. यह पर्व कृषियों को समर्पित है.
कैसे मनाया जाता है लोहड़ी का त्योहार
इस त्योहार का जश्न लोग अपने परिवार के लोगों, रिश्तेदारों, करीबियों और पड़ोसियों के साथ मिलकर मनाते हैं. रात के वक्त सब लोग खुले आसामन के नीचे आग जलाकर उसके चारों ओर चक्कर काटते हुए लोक गीत गाते हैं, नाचते हैं और मूंगफली, मकई, रेवड़ी व गजक खाते हैं. यह त्योहार एकता, भाईचारे, प्रेम व सौहार्द का प्रतीक भी है. पंजाब में लोग लोकनृत्य भांगड़ा और गिद्धा करते हैं. इस दिन विवाहित बेटियों को आग्रह और प्रेम के साथ घर बुलाया जाता है. उन्हें आदर व सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है और कपड़े व उपहार भेंट किए जाते हैं.
क्यों मनाई जाती है लोहड़ी?
लोहड़ी को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव शंकर का तिरस्कार किया था. राजा ने अपने दामाद को यज्ञ में शामिल नहीं किया. इसी बात से नाराज होकर सती ने अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. कहते हैं कि तब से ही प्रायश्चित के रूप में लोहड़ी मनाने का चलन शुरू हुआ. इस दिन विवाहित कन्याओं को घर आमंत्रित कर यथाशक्ति उनका सम्मान किया जाता है. उन्हें भोजन कराया जाता है, उपहार दिए जाते हैं और श्रृंगार का सामान भी भेंट स्वरूप दिया जाता है.
लोहड़ी को लेकर भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार मकर संक्रांति की तैयारी में सभी गोकुलवासी लगे थे. वहीं दूसरी तरफ कंस हमेशा की तरह बाल कृष्ण को मारने के लिए साजिश रच रहा था. उसने बाल कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था और बालकृष्ण ने खेल-खेल में ही उसे मार दिया था. इस खुशी में मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है. लोहिता के प्राण हरण की घटना को याद रखने के लिए इस पर्व का नाम लोहड़ी रखा गया.